पाती

इधर पाती, उधर पाती,
जिधर जाती,नजर पाती।
न सर,पर,पग,नजर हीना,
मगर करती, सफर पाती॥

बहुत पाती, है कलपाती,
न मिल पाती, अगर पाती।
कुशल-संतोष, पहुँचाती,
पहुँच पाती, जिधर पाती॥

न सकुचाती, न शरमाती,
तनिक भी चुप, रह पाती।
जिगर की बात, करती है,
बहुत ही है, निडर पाती॥

नजर छूती, अधर छूती ,
कि छू लेती, जिगर पाती।
मरीजे-इश्क़ घायल की,
दवा है, दर्द हर पाती॥

इधर आती, उधर जाती,
सजा सपने, सुघर पाती।
हँसा देती, रुला देती,
कभी ढा़ती, कहर पाती॥

उमर भर कर, कदर “मोही”,
अजब करती, असर पाती॥

 

विशेष:-(मोबाइल से पहले लोग-लुगाइयाँ पाती लिखा करते/करती थे/थीं। पाती का अर्थ पत्र या चिट्ठी। इन पातियों को पढ़ रहा था, अचानक मुझे अंदर के कमरे में जाना पडा़ और पंखे की तेज हवा पा सारे पत्र कमरे में फैल गये। वापस आ कर पंखे को बंद कर जब एक-एक पत्र चुनने लगा, तब यह रचना बन पडी़।)