याद अगर हो आई तुझको

कैसी बही बयार मीत जो सागर तक ले आई तुझको।
प्रियवर ! लाख बधाई तुझको।।(1)

आँखों के खारे पानी से, सागर तक अँगडा़ई लेता,
पाहन के सम्मुख झुकता तो, वह भी थाम कलाई लेता,
कितने सुरभित पुष्प चढा़ए, गंध आज मिल पाई तुझको।
प्रियवर ! लाख बधाई तुझको।।(2)

जाने कैसा मन का पंछी, उड़ने से जो बाज न आए,
उतर चले तेरी डेहरी पर, रह-रह जैसे अलख जगाए,
गिनती के सुखमय लमहों की, याद अगर हो आई तुझको।
प्रियवर ! लाख बधाई तुझको।।(3)

यूँ तो रोज निकलते हैं प्रिय ! नील गगन अनगिनत सितारे,
मुग्ध मगन, विश्मय में डूबा, चाँद चकित तव रूप निहारे,
यूँ मैं सुमुखि निहारा करता, निशि बन गगन जुन्हाई तुझको।
प्रियवर ! लाख बधाई तुझको।।(4)

अलसाई आँखों तुमने भी, देखा होगा चाँद गगन में,
आ बैठा शशि,भाल तुम्हारे, नित्य तके तव छवि दर्पन में,
तेरे माथे की बिंदिया सा,दे गर चाँद दिखाई तुझको।।
प्रियवर ! लाख बधाई तुझको।।(5)

आकुल चारु चाँद के लोचन,पा प्रिय-दरश तृप्त हो जाते,
प्रिय अधरों की पा प्रिय परसन,मेरे गीत अमर हो जाते,
“सागर” देता स्नेहिल, संचित, पावन, धवल, मिताई तुझको।
प्रियवर ! लाख बधाई तुझको।।(6)