दुश्मन,दोस्त बन कर सामने आने लगे हैं सलिल सरोज दुश्मन, दोस्त बन कर सामने आने लगे हैंमेरे मर जाने के लिए मुझे मनाने लगे हैं । तुम समझते हो खेल है ये इश्क़ मोहब्बतपूछो जिन्हें खत लिखने में जमाने लगे हैं । जल्द होना चाहते हैं हक़दार जायदाद केबाप मरा भी नहीं और लाश उठाने लगे हैं । बहू के पहले कदमों की छाप थे चौखट पेबेटी जनी नहीं, कि निशान मिटाने लगे हैं । फोन और टेलिविजन की आदतें डाल केनादाँ बच्चों का सारा बचपन घटाने लगे हैं । लगता है कि गरीबी के बाद सत्ता मिली हैजनता की कमाई दौलत को लुटाने लगे हैं ।