घर का पहरेदार

वह घर भी क्या कोई घर है,
जिसका पहरेदार नही ?
ऐसा कौन जहां में जिसको,
अपने घर से प्यार नही ?

माँ की ममता, नेह पिता का,
पत्नी का अभिसिंत प्यार,
भाई-बंधु, कुटुम्ब-कबीला,
पास-पडो़सी का व्यवहार,
इन सब से सूना जिसका घर,
वह कोई घर-बार नही।
ऐसा कौन जहां में जिसको,
अपने घर से प्यार नही॥

बिन संतान अभागा नर है,
सूनी कुक्षि अभागिन है,
जीना,क्या जीना बिधवा का,
बालक जो माता बिन है,
वह शैशव भी कैसा शैशव,
जिससे घर गुलजार नही ?
ऐसा कौन जहां में जिसको,
अपने घर से प्यार नही ?

प्यार किया जिसने न किसी से,
वह क्या जाने प्रीति विधुर,
मधुऋतु के हर आमंत्रण पर,
गीत सुनाते भ्रमर मधुर,
वह यौवन भी कैसा यौवन,
जिसमें हो गुंजार नही ?
ऐसा कौन जहां में जिसको,
अपने घर से प्यार नही॥

बीच हृदय गर सिंधु न उमडे़,
गर न मदिर नयना मतवारे,
थकित,श्रमित, प्रियतम को आते,
देख न जो दो बाँह पसारे,
व्यर्थ समर्पण तन-मन का,
गर बने गले का हार नही।
ऐसा कौन जहां में जिसको,
अपने घर से प्यार नही॥

जिसके हिय में सर्पिल घातें,
स्वार्थ भरा मंसूबा जिसका,
मर्यादित अभिमान नही तो,
निश्चित ही कुल डूबा उनका,
वो दुश्मन कुलघाती, “मोही”,
जिसका हृदय उदार नही।
ऐसा कौन जहां में जिसको,
अपने घर से प्यार नही॥