कोरोना
प्रतिबंधों के बीच भला मैं,
कैसे खुशियाँ पास बुला लूँ?
पास पहुँच कर भी यह दूरी,
पन्द्रह दिन यह कैसे टालूँ?
चाहे पनघट मुझे बुलाए,
सरिता चरण पखारन आए,
चाहे पुष्प सुगंध उडा़ए,
कलिका खिले और मुरझाए,
मुझे नही आदेश कि अपने,
सपनों को साकार बना लूँ।
पास पहुँच कर भी यह दूरी,
पन्द्रह दिन यह कैसे टालूँ ?
चाहे बिंदिया भाल सुहाए,
चाहे कर कँगना खनकाए,
चाहे चाँद उतर धरती पर,
सेज सजा सौ-सौ बल खाए,
रंचिक वक्त काश! मिलता तो,
मन की पागल प्यासबुझा लूँ?
पास पहुँच कर भी यह दूरी,
पन्द्रह दिन यह कैसे टालूँ ?
चाहे सागर कर फैलाए,
या फिर उफ़न-उफ़न लहराए,
चाहे स्वाति-बूँद हित कोई ,
सीपी अपना मुहँ फैलाए,
चोर नज़र है मुझ पर सब की,
अमृत की दो बूँद न पा लूँ ।
पास पहुँच कर भी दूरी,
पन्द्रह दिन यह कैसे टालूँ??
मिलन गीत कोयलिया गाए,
चाहे उपवन भर मुसकाए ,
चाहे राधा संग सांवँरिया ,
साँझ-सकारे रास-रचाए,
दुनिया ताक लगाए बैठी,
कहीं न मैं मधुमास मना लूँ ।
पास पहुँच कर भी दूरी,
पन्द्रह दिन यह कैसे टालूँ??
बोले बोल पपीहा, “पी-हा”,
पिंहँक मयूरा टेर लगाए,
जला आश का दीपक बैठा,
नींद नैन की उड़-उड़ जाए,
“मोही” तोड़ नज़र का पहरा,
दो पल प्रिय से नज़र मिला लूँ।
पास पहुँच कर भी यह दूरी,
पन्द्रह दिन यह कैसे टालूँ ??