चुपके ले चलो रे डोलियाँ

खोखला किया हरा चमन, राजसी दुलारों ने।
रक्त से भिगो दिया वतन, फैलती दरारों ने।।

तार-तार चूनरी हुई, कुछ पता न चोली का,
लाज का किया है यूँ हरण, अपने कर्णधारों ने।।

चुपके ले चलो रे डोलियाँ, पथ है उनकी टोली का,
देश का किया है यूँ पतन, दर्द के कहारों ने।।

साँस लें हवा में किस तरह, डर है उनकी गोली का,
खूब किया है नयी चलन, पातकी बहारों ने।।

चल रही नयी-नयी सदी, शोर उनकी बोली का,
स्वाभिमान कर दिया हवन, उनके ताबेदारों ने।।

ले बहार “आ वसंत आ”, “मोही” रंग-रोली का,
भर दिए कई सतत् चुभन, पतझरी तुषारों ने॥