लहरता रहे स्नेह सागर

सुगंधित चमन का, सुमन प्रिय खिला है,
मिला जब तो इक रहगुजर सा मिला है।
कभी हम मिलेंगे, खिलेंगे सुमन सा,
न उसको खबर थी, न मुझको पता है॥

लहरता रहे स्नेह सागर सदा ही
मगर एक तूफान, जैसे उठा है।
नहीं ठग सकेगा, वो तूफान हमको,
बडी़ शान से जब कि छलने चला है॥

पता है कि भावों सुमन बीन कर के,
बडी़ मुश्किलों बाद गजरा बुना है।
पडा़ जब गले में वही पुष्प गजरा,
गया भूल सब मैं, जो शिकवा-गिला है॥

अतः मात्र, “सागर” चमन सींचता है,
खिला ही रहे नित, चमन जो खिला है॥