मुहब्बत की गलियों में अमर नाथ सिंह ‘मोही’ मेरी दास्ताने-कहानी न पूछो,जवानी अजब थी दीवानी न पूछो।कहीं शूल थे तो, कहीं ठोकरें थी,मगर मेरी अल्हड़, जवानी न पूछो॥बहुत दूर थी, राह औ’ रोशनी भी,लगी सारी दुनिया, बेगानी न पूछो।महज पीर सहमी सी आगोश में थी,ब्यथा किससे कहता, जु़बानी न पूछो॥मगर हौसला मेरा, अम्बर को छूता,नयन में लिए खारा, पानी न पूछो।मुहब्बत की गलियों का, सरताज “सागर”,बुझाता बढा़ आग, पानी न पूछो॥