काइल नही होता सलिल सरोज इंतज़ार करने से भी सब हासिल नही होताजो दरिया है, वो कभी साहिल नही होता। ज़िन्दगी भले ही हो रोज़ नज़्र-ए-मसाइलखुदाया, ये दिल कभी बोझिल नही होता। वो मुझ तक आता है और गुज़र जाता हैबसा है नैनों में, रूह में शामिल नही होता। कैसे मानें कि बेहद कुछ अच्छा नहीं होताइश्क़ जितना भी हो, वो फ़ाज़िल नही होता। कुछ तो बात है जरूर तुम में, सच जानोवर्ना यूँ ही मैं किसी का काइल नही होता। मैं चाहता हूँ कि अमन-चैन का जहान होमैं खुदा नही, मेरा कहा तामील नही होता। नज़्र-ए-मसाइल– परेशानियों से घिरा हुआ । काइल – प्रशंसक ।