कड़वा सच

संत बने कुसंत जने जो लोगों को ठगते
फूटे भांडा जब उनका तो पड़े जेल में सड़ते।
रोज गाए खूब भजन नित करें सत्संग
मन तो वश में रहा नही मति हो रही भंग।
मन में भरी है वासना तो कैसे करें उपासना
मन में सोच रहा है गंदा प्रभु से मिले नही वह बंदा।
संत बने कुसंत जने जो लोगों को ठगते
फूटे भांडा तब उनका तो पड़े जेल में सड़ते।

काम क्रोध मद लोभ सब उसमें समाए
मैला वस्त्र पड़ा जीवन का चमक कहां दिख पाए
बंजर पड़ी है खेती तो बीज कहां उग पाए
समझ का हल चला न उसपे तो भूखा ही मर जाए।
संत बने कुसंत जने जो लोगों को ठगते
फूटे भांडा तक उनका तो पड़ी जेल में सड़ते।

गु (अंधेरा) रु (रोशनी) तब गुरु शब्द कहाये
अंधकार मिटा प्रकाश फैलाए और सत्य स्पष्ट दिखाए
सत्य जान तब सेवक के मुख से सतगुरु नाम आए
सत की नाव में जो बैठे हैं वो ही भव से तरते जाए।
संत बने कुसंत जने जो लोगों को ठगते
फूटे भांडा जब उनका तो पड़े जेल में सड़ते।

सोच समझ जांच परख लो तब जाओ किसी शरण में
कागज की नाव में न बैठो कहीं डूब ना जाए अधर में
सतगुरु ऐसा चाहिए जो करें अज्ञान का नाश
ईश्वर में मन जोड़ दें और वह स्वामी मैं दास।
संत बने कुसंत जने जो लोगों को ठगते
जब फूटे भाड़ा तब उनका तो पड़े जेल में सड़ते।