शब्द की कदर न जाने

मगन भए सुर ताल में, और मन की बात है माने
महिमा तेरी अपार है शब्द, जग तेरी कदर न जाने।

घट में भया प्रकट भक्त के और मुख से बाहर आवे
कान द्वार में प्रवेश करे तू और घट भीतर तू जावे
अंदर जावे प्यास जगावे करवाए सतगुरु की खोज
सतगुरु तुझको चीज ऐसी निस दिन करे तू मौज।

मगन भए सुर ताल में, और मन की बात है माने
महिमा तेरी अपार है शब्द, जग तेरी कदर न जाने।

मुख से गाए शोर मचाए तुझ पर ध्यान ना देते
सुनने और सुनाने वाले मन के गुलाम ही रहते
मन को छुएं ढोलक तबला और छुएं हैं सुर ताल
हृदय को छुएं सतगुरु के शब्द और छूटे सब जंजाल।

मगन भए सुर ताल में,और मन की बात है माने
महिमा तेरी अपार है शब्द,जग तेरी कदर न जाने।

शब्द है सुंदर अथाह समुंदर जो कोई गोते खावे
द्वेष क्लेश जो सब धुल जावे मन सुंदर निर्मल होवे
कागा से वो हंस बने और चुन चुन मोती खावे
सतगुरु कृपा भए जो उनपे और प्रभु से वो मिल जावे।

मगन भए सुर ताल में, और मन की बात है माने
महिमा तेरी अपार है शब्द, जग तेरी कदर न जाने।

शब्द में अपार है ऐसी शक्ति मूरख में भर दे ज्ञान
वेद शास्त्र और भागवत भी सब तेरी करें बखान
तुझको सुनकर ‘धर्मवीर’ को लगी प्रभु की प्यास
कृपा करी सतगुरु ने मुझपे मेरी पूरी कर दी आस।

मगन भए सुर ताल में, और मन की बात है माने
महिमा तेरी अपार है शब्द, जग तेरी कदर न जाने।