तेरी राह का पत्थर ही सही सलिल सरोज तेरी राह का पत्थर ही सही, तेरी राह में तो हूँतू खूब कोसा करे ही सही, तेरी आह में तो हूँ। चोरी किए हुए मेरे ही शेर अच्छे लगते हैं तुम्हेंमहफ़िल को छोड़ो मगर मैं तेरी वाह में तो हूँ। तारीखें दिलों दिमाग से मिटा भी दिया तो क्यातुम्हारे घर के कलैंडर के किसी माह में तो हूँ। रात- रात भी पुराने खतों को यूँ ही नहीं पढ़तेमैं भी किसी खत के जैसे तुम्हारी बाँह में तो हूँ। क्षितिज पर शायद कोई अक्स डूब गया होगामैं आँसू बन कर ही सही, तेरी निगाह में तो हूँ।