अमर प्रेम
अमर प्रेम मेरा तेरा
अब जान गया यह मैं स्वामी।
तृप्त हुआ हृदय मेरा
जब मिला मुझे सच्चा ज्ञानी।
सुनाया मीठा वचनों का राग
गुरु वचनों से गया मैं जाग।
मैली चादर थी यह कब से
रहा ना इसमें एक भी दाग।
दिल की चाहत पूरी हो गई
बात यह मैंने अब जानी।
अमर प्रेम मेरा तेरा
अब जान गया यह मैं स्वामी।
तृप्त हुआ हृदय मेरा
जब मिला मुझे सच्चा ज्ञानी।
टूट गए सब मोह के बंधन
मिल गया राम रतन धन
हर्षाया है अब मेरा यह मन
मार गिराए चार-पांच जन
बहुत से दान जगत में देखें
तुमसा नहीं कोई दानी।
अमर प्रेम मेरा तेरा
अब जान गया यह मैं स्वामी।
तृप्त हुआ हृदय मेरा
जब मिला मुझे सच्चा ज्ञानी।
बिगड़ी मेरी तुमने संभाली
प्रेम से भर दिया जीवन खाली।
सूखे-पन में आई हरियाली
‘धर्मवीर’ तो है पागल मस्ताना
प्रभु में प्रीत है लग जानी।
अमर प्रेम मेरा तेरा
अब जान गया यह मैं स्वामी।
तृप्त हुआ हृदय मेरा
जब मिला मुझे सच्चा ज्ञानी॥