आभार
आभारी हूँ गुरु जी मैं
जो मुक्ति द्वार पाया है
भटक कर आ गया तेरी
शरण में स्वर्ग पाया है।
भटकता था कहाँ कहाँ
न मालूम थी मुझे मंजिल
किया कृपा प्रभु तुमने
है मंजिल से मिलाया है।
आभारी हूँ गुरु जी मैं
जो मुक्ति द्वार पाया है
भटक कर आ गया तेरी
शरण में स्वर्ग पाया है।
अंधेरा था वह माया का
ठोकरें खा रहा दर-दर
जलाकर ज्ञान का दीपक
उजाला घट में छाया है।
आभारी हूँ गुरु जी मैं
जो मुक्ति द्वार पाया है
भटक कर आ गया तेरी
शरण में स्वर्ग पाया है।
यह खेती थी पड़ी बंजर
ना उगा बीज खेती के अंदर
भक्ति का बीज बोकर के
जीवन का खेत हरा हो आया है।
आभारी हूँ गुरु जी मैं
जो मुक्ति द्वार पाया है
भटक कर आ गया तेरी
शरण में स्वर्ग पाया है।