बड़ी देर हो गई सतगुरू
बड़ी देर हो गई तुम आज,मेरे सतगुरु क्यों नहीं आए
टूट रहे सांसों के पत्ते,फिर डाली पर ना लग पाए।
सूख गया जीवन का पौधा
हो गया जीवन का सौदा
नहीं था कोई इसका माली
चली गई जीवन की हरियाली
दुनिया के बाजार में ले जाकर
यह सस्ते में बिक जाए।
बड़ी देर हो गई तुम आज,मेरे सतगुरु क्यों नहीं आए
टूटे रहे सांसों के पत्ते, फिर डाली पर न लग पाए।
सूख गई जीवन की नदी
ना रहा बूँद भर पानी
कब होगी बरसात कृपा की
कब भर पाएगा पानी
सूरज का है तेज ताप संग
वायु ने भी है ठानी
सूरज क्रोध और मन पवन
यहाँ दोनों मुझे सताए।
बड़ी देर हो गई तुम आज,मेरे सतगुरु क्यों नहीं आए
टूट रहे सांसों के पत्ते, फिर डाली पर न लग पाए।
जीवन पथ पर अंधकार घना है
और कुछ ना दिखाई देता है
ठोकर खा खाकर मैं चलता
अब तक जीवन यूँ बीता है
नहीं हुआ प्रकाश राह में
और पग से खून भी बहता है
अंधेरी राह में पत्थरों से टकराकर
है लथपथ खून से नहाए।
बड़ी देर हो गई तुम आज, मेरे सतगुरु क्यों नहीं आए
टूट रहे सांसों के पत्ते, फिर डाली पर ना लग पाए।
मैली चादर जीवन की यह
दाग बहुत हैं लगे हुए
काम क्रोध मद लोभ अहम की
कीचड़ में हैं सने हुए
इतना मेल चढ़ा है इस पर
चमक ना इसकी दिख पाए
साफ हो जाए मैली चादर
सतगुरु शरण में जो आए।
बड़ी देर हो गई तुम आज,मेरे सतगुरु क्यों नहीं आए
टूट रहे सांसों के पत्ते,फिर डाली पर ना लग पाए।