माँ का आंचल
मैं कर्ज तेरा जननी
कबहु ना चुका सकता
एहसान तेरा ऐ माँ
कबहु ना भुला सकता।
गीले में सोई तुम
मुझे सूखे में सुलाती थी
हम रोने लगते थे
तुम दौड़ी आती थी
गोदी में उठा कर के
सीने से लगा लेती थी।
मैं कर्ज तेरा जननी
कबहु ना चुका सकता
एहसान तेरा ऐ माँ
कबहु ना भुला सकता।
हम नाजुक कोमल से
तेरे आंचल में खेले
घुटनों के बल चलते
अभी उठते कभी गिरते
उंगली पकड़ कर के
चलना सिखलाती थी।
मैं कर्ज तेरा जननी
कबहु ना चुका सकता
एहसान तेरा ऐ माँ
कबहु ना भुला सकता।
मुझे याद है वह दिन माँ
जब तू रहती भूखी
मुझको तो खिला कर के
तू खुद भूखी ही रहती
मुझसे छुप करके तुम
चुप चुप तुम रोती थी।
मैं कर्ज तेरा जननी
कबहु ना चुका सकता
एहसान तेरा ऐ माँ
कबहु ना भुला सकता।
ममता क्या होती है
यह माँ ही जाने हैं
बेटे के कष्टों को
माँ ही पहचाने हैं
चाहे ले लूं जन्म हर बार
ऋण मैं ना चुका सकता।
मैं कर्ज तेरा जननी
कबहु ना चुका सकता
एहसान तेरा ऐ माँ
कबहु ना भुला सकता।