मैं बुजुर्ग हूँ

घर के बाहर बैठा
अकेला लाचार
पल-पल सहता अत्याचार
ढह चुके खंडहर महलों का
वही पुराना दुर्ग हूँ ।
मैं बुजुर्ग हूँ ।

कभी डांटता
कभी डांट सहता
कभी कुछ ना कहता
रहता अपनों के बीच
आंखों में होती कींच
रहता दिल को भींच
थोड़ा खुद्दार
थोड़ा खुदगर्ज़ हूँ ।
मैं बुजुर्ग हूँ ।

पथराई आंखें
कभी भीतर
कभी बाहर झांके
रहता इंतजार
मन करता पुकार
बीत चुका कुछ
कुछ बचा बाकी
अपनी जिंदगी का
लिख रहा
खुद संदर्भ हूँ ।
मैं बुजुर्ग हूँ ।