मैं बुजुर्ग हूँ सचिन दुबे घर के बाहर बैठाअकेला लाचारपल-पल सहता अत्याचारढह चुके खंडहर महलों कावही पुराना दुर्ग हूँ ।मैं बुजुर्ग हूँ ।कभी डांटताकभी डांट सहताकभी कुछ ना कहतारहता अपनों के बीचआंखों में होती कींचरहता दिल को भींचथोड़ा खुद्दारथोड़ा खुदगर्ज़ हूँ ।मैं बुजुर्ग हूँ ।पथराई आंखेंकभी भीतरकभी बाहर झांकेरहता इंतजारमन करता पुकारबीत चुका कुछकुछ बचा बाकीअपनी जिंदगी कालिख रहाखुद संदर्भ हूँ ।मैं बुजुर्ग हूँ ।