माँ के बुलाने पर बेटी सदा कहती थी अभी वक्त नहीं है आऊं मैं कैसे माँ अब वक्त बहुत है पर माँ कहीं नही पर माँ कहीं नही।
माँ के बिना ये लगता हर शै उदास है मंदिर की वो कुर्सी या पलंग का वो कोना सब सूने पड़े हैं खनकती हंसी का स्वर तो है वह कोमल सा स्पर्श तो है माँ कहीं नही पर माँ कहीं नही।
जाने वाले चले जाते हैं और रह जाती हैं यादेँ यादें और सिर्फ़ यादें।