द्रौपदी

वह सभा भरी थी वीरों से,
विद्वानों से, रणधीरों से
किंतु सब के सब मौन रहे,
प्रश्नों के उत्तर कौन कहे?
केवल गूंजा इक आर्तनाद,
दुष्टों, कुटिलों का अट्टहास
इक स्त्री का हुआ जब मान भंग
हाँ ! धरा गगन भी हुए स्तब्ध
चहुँ ओर से जब वो निराश हुई
हे कृष्ण ! कृष्ण वो पुकार उठी
हुई देर ना क्षण भर आने में
उस कण-कण, घट-घट वासी को
हदय से हम करते पुकार
आओ गोविन्द फिर एक बार
आओ केशव फिर एक बार।