इंसान

क्या से क्या हो गया है,
आज का इंसान
उजले तन और कलुषित मन
धीरे धीरे बन रहे अवगुणों की खान।

अहंकार में भूल गया है
भावनाओं की अहमियत
सब को तुच्छ समझता है
पर मिट्टी है असलियत।

चाहता है बड़ा बनना
या शायद बड़ा दिखना
इसलिए गढ़ता है वह झूठे इल्ज़ाम
सच्चे लोगों पर सरेआम।

काश! समझ वह पाता
सच तो इक सूरज है
उसकी आभा से ही होगा
तम का काम तमाम।