इंसान सुमन शर्मा क्या से क्या हो गया है,आज का इंसानउजले तन और कलुषित मनधीरे धीरे बन रहे अवगुणों की खान।अहंकार में भूल गया हैभावनाओं की अहमियतसब को तुच्छ समझता हैपर मिट्टी है असलियत।चाहता है बड़ा बननाया शायद बड़ा दिखनाइसलिए गढ़ता है वह झूठे इल्ज़ामसच्चे लोगों पर सरेआम।काश! समझ वह पातासच तो इक सूरज हैउसकी आभा से ही होगातम का काम तमाम।