सावन की प्रथम फुहार

तेरे नैनो से छलक रही है
तेरे प्रेम की रस -धार
तन–मन मेरा भीग रहा है
जैसे हो सावन की प्रथम फुहार।

खुद को मैं भी जान रही हूँ
तेरी नज़रों से पढ़ कर
हिरनी जैसी चंचल हूँ मैं
लावण्य कुसुम से बढ़कर
दे-देकर उपमाएं तुमने
मेरा रूप दिया है सँवार
तन–मन मेरा भीग रहा है
जैसे हो सावन की प्रथम फुहार।

तेरी एक चाह पर अपना
सर्वस्व तुझे मैं कर दूँ अर्पण
ह्रदय में मेरे बसा है तू
मेरा तन–मन तुझे समर्पण
नहीं है कुछ भी ऐसा मुझमे
जिस पर तेरा न हो अधिकार
तन–मन मेरा भीग रहा है
जैसे हो सावन की प्रथम फुहार।

एक-दूजे में अस्तित्व समाया
पृथक नहीं अब हम दोनों
तुझमे मैं हूँ और मुझमें तू
इस तरह से पूर्ण हुए हम दोनों
आँखों से मेरी बरस रहा है
तेरे हृदय का अप्रतिम प्यार
तन–मन मेरा भीग रहा है
जैसे हो सावन की प्रथम फुहार।