न जाने क्यों मेरे साजन

न जाने क्यों मेरे साजन
तुम याद बहुत अब आते हो
बंद करूँ मैं आँखें तब भी
तुम मुझको दिख जाते हो ,
न जाने क्यों…। 

धड़कन में मेरी गूँज रही हैं
जो बातें तुम मुझसे कहते थे
अक्षर बनकर सब सम्मुख है
जिस भाव में हम -तुम बहते थे
कलम उठाऊँ जब भी मैं
मेरी कविता तुम बन जाते हो
बंद करूँ मैं आँखें तब भी
तुम मुझको दिख जाते हो,
न जाने क्यों…। 

एक लम्हा भी जो साथ रहें हम
जीवन पूरा जी लेते थे
मेरी खुशियाँ मुस्कान तेरी थी
ग़म तेरे, आँखों से मेरी बहते थे
जब सोंचूँ तुम दूर हो मुझसे
मेरी साँसें तुम बन जाते हो
बंद करूँ मैं आँखें तब भी
तुम मुझको दिख जाते हो ,
न जाने क्यों…। 

हर सुबह का सूरज मन में मेरे
आशाओं का दीप जलाता है
तुम आओगे मुझसे मिलने
यह प्रेम संदेशा दे जाता है
सांझ की लाली नभ पे छाई जब
तुम बनके चाँद मेरे आ जाते हो
बंद करूँ मैं आँखें तब भी
तुम मुझको दिख जाते हो,
न जाने क्यों…। 

हर ख़्वाब है रौशन तुमसे ही अब
आँख खुले तो तुम ही सम्मुख
तुम ही खुशियाँ ,तुम ही दुनिया
अब तुम ही मेरे जीवन का सुख
नज़रें मेरी खोजे तुमको और
तुम धड़कन में मेरी छुप जाते हो
बंद करूँ मैं आँखें तब भी
तुम मुझको दिख जाते हो,
न जाने क्यों…।