अन्तर्मन सीमा वर्मा 'अपराजिता' छुपी असंख्य तहों के भीतर,मन की दुनिया अंतरंग मे;देख नहीं पता तू उसको,भटक रहा क्यो बहिरंग में।ध्वनि आत्मा की क्षीण सही,पर सच्ची बात बताती है;कर ले शांत विकारों को तू,दिल की आवाज़ बुलाती है।ढूंढ रहा है बाहर किसको तू,हर आनंद है स्व मन में;झरना बहता है खुशियों का,उद्गम जिसका अन्तर्मन में।