मैं एक दीपक बन जाऊँगी

अपने कलुषित अंतरतम में
उज्ज्वल ज्योति जलाऊँगी
ज्ञान की ओजस किरणों से
मन का अंधकार मिटाऊँगी
इस बार दीवाली पर खुद ही
मैं एक दीपक बन जाऊँगी।

अम्बर से लेकर अवनि तक
चहुँ दिशि उजियारा फैलाऊँगी
चाँद-सितारों सी जगमग होगी
मैं प्रेम का दीप जलाऊँगी
प्रेम के उज्ज्वल दीपक की
मैं खुद ज्योति बन जाऊँगी
इस बार दीवाली पर खुद ही
मैं एक दीपक बन जाऊँगी।

ईर्ष्या,द्वेष, क्रोध और काम
है अंधकार का दूजा नाम
प्रेम की पावन गंगा के संग
इन सब पर विजय पा जाऊँगी
जीवन के हर रंगमंच की
मैं खुद रंगोली बन जाऊँगी
इस बार दीवाली पर खुद ही
मैं “दीपावली“ बन जाऊँगी।