बुरे लड़के

खड़े चौराहे पे होकर, जलाते सिगरेटें कैसे,
लगाकर चार कश देखो, उड़ाते है धुआं कैसे ।

कभी दो चार घूँटो से, खुमारी थी चढ़ी जिनको,
अभी दो चार बोतल हों, तो पड़ जाती हैं कम इनको ।

जो पैसे पास में कम हों, तो सिगरेट छोड़ देते हैं,
जलाकर चार बीड़ी तब, तलब पूरी वो करते हैं ।

शरू होती है अंग्रेजी से, देशी तक भी जाते हैं,
कभी वो आँख भरने को, चिलम के कश लगाते हैं ।

बुरे लड़को को तुमने क्या, कभी रोते भी देखा है,
वो अपने आंसुओं को भी, तो हर कश में जलाते हैं ।

जरुरी हैं नहीं के कोई, खुद की रूह को बेचे,
तमन्ना वो भी रखते हैं, किसी को न बताते है ।

बुरे लड़कों की भी तो, एक आदत अच्छी होती है,
किसी की भी कहाँ वो, फिर कभी नज़रों को भाते हैं ।

यही तो जीत है उनकी, यही वो करना चाहते हैं,
कभी होकर के वो अच्छे, बहुत से गम उठाते हैं ।

कोई हो साथ या न हो, नहीं पड़ता फर्क इनको,
वो संग में चार लेते है, अकेले दस उड़ाते हैं ।

वो घर आते है चुपके से, बहन को कॉल करते हैं,
तो खुलते ही वो दरवाजा, बिस्तर को पकड़ते हैं ।

बड़े चुप चुप से रहते हैं, जो पापा घर में होते हैं,
वो घर के ठीक पीछे ही, सिगरेटें चार पीते हैं ।

चबाते है वो च्विंगम फिर, कभी चुटकी चबाते हैं,
ये हालत देखकर उनकी, समझ पापा भी जाते हैं ।

किताबों के हरेक कोने पे, जिसका नाम लिखते हैं,
ये अपनी उन किताबों को, उसी से ही छुपाते हैं ।

जो लड़के थे कभी अच्छे, अगर वो अब बुरे होंगे,
किताबों के वही कोने तो ज़िम्मेवार कुछ होंगे ।

उनके इस बुरेपन की कहानी कुछ भी हो लेकिन,
कहीं हालात कुछ होंगे, कहीं हालात कुछ होंगे ।