इंतजार तेरा
वो खामोश सी
आहट तेरे क़दमों की,
उम्मीदों की देहरी पर
जाने कितने
चिरागों को रोशन करती है,
शाम का सूरज
ढलते-ढलते
उम्मीदों की
किवाड़ के सांकल को
अनायास ही खोल देता है,
और मैं यूँ ही बैठ जाती हूँ
देहरी पर
तेरी चाहतों के
अलंकार से
श्रृंगारित कविता की तरह,
और करती हूँ अपलक
इंतजार तेरा।
महसूस होती है
हवाओं में ख़ुशबू तेरी
जो मेरे रोम-रोम को
सुगन्धित कर देती है
और मैं महक उठती हूँ
रातरानी की तरह,
और करती हूँ अपलक
इंतज़ार तेरा ।
हज़ारों ख़्वाब
पंक्तिबद्ध होकर
नैनों की कोठरी पर
टिमटिमाने लगे हैं
उनकी रोशनी
प्रकाशित करती है
मेरे ह्रदय को
और मैं
उज्ज्वल हो उठती हूँ
चंद्रमा की तरह।
और करती हूँ अपलक
इंतज़ार तेरा।
रात की कालिमा
धीरे-धीरे
मेरे हृदय को
संतप्त कर रही है
और जाने कितनी ही
शंकाओं को
जन्म देती है
मेरे अधीर हृदय में,
अश्रुपूरित
नयनों के साथ
तड़प उठता
मेरा मन
किसी व्याकुल
हिरनी की तरह,
और फिर मैं अधिक व्यग्रता से
करती हूँ अपलक
इंतज़ार तेरा।
ख़्वाबों का धुंध
हट गया,
हक़ीक़त ये है कि
तुम नहीं आये,
हवाओं में
मलीनता है और
रात रानी भी डाली से
झड़ चुकी है,
पलकों की कोठरी पर
टिमटिमाते सभी ख़्वाब
दिन की रोशनी में
जुगनू हो गए,
तुम नहीं आये
फिर भी यह सिलसिला
तेरे इंतज़ार का
यूँ ही चलता है,
हर शाम सूरज ऐसे ही
ढलता है,
हर रात चाँद ऐसे ही
निकलता है
तुम आओगे एक दिन
इस उम्मीद पर
अब भी करती हूँ अपलक
इंतज़ार तेरा।