देखा न चलती नाव को
पैरों की थिरकन सब ने देखी
देखा न रिसते घाव को
लहरें देखी सागर की सब ने
देखा न चलती नाव को।
फलों के अपने बोझ से ही
झुक गई है उस वृक्ष की डाल
डालों का झुकना सब ने देखा
देखा ना उसकी छाँव को।
लहरें देखी सागर की सब ने
देखा ना चलती नाव को।
अपनी ही प्रखर रश्मि से देखो
चौंध गये हैं चक्षु सूर्य के
जलता सूरज सबने देखा
देखा ना उसकी राख को।
लहरें देखी सागर की सब ने
देखा ना चलती नाव को।
उँगली पकड़ जिसे चलना सिखाया
वो बढ़ चला अपनी राह पर
चलना उसका सबने देखा
देखा ना थकते पाँव को।
लहरें देखी सागर की सब ने
देखा ना चलती नाव को।
बचपन बीता जिसकी छाया में
बूढ़ा वो बरगद मुरझाया
मुरझाये बरगद को भूला,
मुड़कर ना देखा अपने गाँव को।
लहरें देखी सागर की सब ने
देखा ना चलती नाव को।