गुज़रा ज़माना सचिन दुबे गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।वो कितने हसीं थे, वो मासूम से पल,वो कितना सुहाना था, अपना तराना ।गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।वो तिरछी निगाहें जो मुझको ही चाहेंवो ऊँगली दबा के यूँ नख को चबाना,वो तकना मेरी राह सुबह से शब तक,बस एक झलक में थे जीते ज़माना ।गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।वो मंदिर की सीढ़ी से चढ़कर के आनावो सर पर दुपट्टा चढ़ाना गिराना,उठाकर के कर करना वंदन तुम्हारावो अपनी ऊँगली से चन्दन लगाना ।गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।तेरा साथ हो और पथ भूल जाएँ,ये होता ही क्यूँ था ये हमने न जाना,न मंजिल की चाहत, न फ़िक्र-ए-राहतेरा साथ हो और चलते ही जाना ।गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ॥