गुज़रा ज़माना

गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,
मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।
वो कितने हसीं थे, वो मासूम से पल,
वो कितना सुहाना था, अपना तराना ।

गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,
मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।

वो तिरछी निगाहें जो मुझको ही चाहें
वो ऊँगली दबा के यूँ नख को चबाना,
वो तकना मेरी राह सुबह से शब तक,
बस एक झलक में थे जीते ज़माना ।

गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,
मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।

वो मंदिर की सीढ़ी से चढ़कर के आना
वो सर पर दुपट्टा चढ़ाना गिराना,
उठाकर के कर करना वंदन तुम्हारा
वो अपनी ऊँगली से चन्दन लगाना ।

गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,
मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ।

तेरा साथ हो और पथ भूल जाएँ,
ये होता ही क्यूँ था ये हमने न जाना,
न मंजिल की चाहत, न फ़िक्र-ए-राह
तेरा साथ हो और चलते ही जाना ।

गुज़रते है जब हम, उस रहगुज़र से,
मुझे याद आता है, गुज़रा ज़माना ॥