सोनपरी से मिलते होंगे
सोनपरी के ख्वाब
उन आँखों में भी पलते होंगे,
कभी -कभी वो भी ख्वाबों में
सोनपरी से मिलते होंगे।
उनके ख़्वाबों की दुनियाँ भी
क्या बिल्कुल अपने जैसी होगी,
जैसी अपनी रातें हैं,
क्या उनकी रातें भी वैसी होंगी;
क्या चाँद -सितारे
उनके आँगन में भी ढलते होंगे।
कभी -कभी वो भी ख्वाबों में
सोनपरी से मिलते होंगे।
विकसित होने से पहले ही,
कुम्हलाएं से हैं सब फूल।
भूख,गरीबी और लाचारी,
चुभती है बनकर एक शूल।
क्या आशाओं के नीर बिंदु से,
ये सुमन कभी भी खिलते होंगे।
कभी -कभी वो भी ख्वाबों में
सोनपरी से मिलते होंगे।
ममता के आँचल से दूर कहीं,
गलियों में ये सोते हैं।
अंधेरों में डर अपनी परछाईं से,
सिसक -सिसक कर रोते हैं।
क्या अंधेरों से लड़ने को,
कुछ जुगनू वहाँ चमकते होंगे।
कभी -कभी वो भी ख्वाबों में,
सोनपरी से मिलते होंगे।
इंद्रधनुष से ख़्वाब बहुत हैं,
बचपन वहाँ उदास बहुत है।
चलो मिलकर हम सब,
बचपन को हँसाये,
उनके ख्वाबों की दुनिया में,
उजले -उजले रंग भर आये।
नन्हीं -नन्हीं आँखों में,
सपनों के दीपक जलते होंगे।
कभी -कभी वो भी ख्वाबों में
सोनपरी से मिलते होंगे…..।।