सम्हल रहा है इश्क़ सचिन दुबे लफ्ज़ दर लफ्ज़ शायरी में बढ़ रहा है इश्क़उनकी नज़र में और ज़रा खल रहा है इश्क़ ।तुम मेरे दिल से अभी और खेल सकते होअभी तो अपनी चाल सभी चल रहा है इश्क़ ।सच न सही सब फरेब ही मेरे हिस्से कर दोतेरे जैसा ही तो बिलकुल बदल रहा है इश्क़ ।लगता है वो मुझे तोड़ने की कश्मकश में हैसाज़िश कोई खिलाफ ऐ दिल रच रहा है इश्क़ ।रौनक तो उसी से है, महफ़िल किसी की होये न जाने कैसी आग में जल रहा है इश्क़ ।तरकश में जो भी तीर है तू आजमाता चलतेरी हर एक चाल से अब सम्हल रहा है इश्क़ ।