फिर कर लेने दो प्यार प्रिये दुष्यंत कुमार अब अंतर में अवसाद नहींचापल्य नहीं उन्माद नहींसूना-सूना सा जीवन हैकुछ शोक नहीं आल्हाद नहींतव स्वागत हित हिलता रहताअंतरवीणा का तार प्रिये ..इच्छाएँ मुझको लूट चुकीआशाएं मुझसे छूट चुकीसुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँमेरे हाथों से टूट चुकीखो बैठा अपने हाथों हीमैं अपना कोष अपार प्रियेफिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..।