रात हो नींद हो और इक़ ख्वाब हो निधि चौधरी रात हो नींद हो और इक़ ख्वाब होऔर उस ख्वाब में तुम बेहिसाब हो।गीत हो छंद हो, शब्द शब्द प्रेम हो,नाम तेरे सनम इक़ ऐसी किताब हो।तन्हा तन्हा कभी, साथ ऐसा रहे,तुम रहो, हम रहें, और महताब हो।मेरे सजदों में बस तेरा चेहरा रहे,इक़ झलक को मेरे तू भी बेताब हो।तेरी तारीफ़ में अब “निधि” क्या कहे,तुम मेरे जीस्त में तोहफा नायाब हो।