नेह निमंत्रण
सुना है,
मानसून मेरे गाँव से होने के बाद,
जाता है तुम्हारे शहर तक….।
अब जब कोई साधन नहीं बचा
तुम तक बातें पहुँचाने का,
इन बारिश के बूंदों संग……
मैं भेज रही हूँ इक़ नेह निमंत्रण
प्रियतम तुमको आने का….।
अनुभव करना तुम
बारिश के पहले
चलने वाली हवाओं का…..।
स्पर्श मिलेगा मेरी बाहों का…।
और जब पहली बून्द गिरे…
तुम्हारे तन पर…
हाथ बढ़ा कर हथेली में,
दूजी बून्द को तुम लेना थाम….।
फिर बन्द करना मुट्ठी
और जो चित्र दिखे मेरा तो…
फिर धीरे से ले लेना मेरा नाम…..।
और जब बूंदे हो जाए तेज….
बरसने लगे झमाझम
गरजने लगे आसमान में धड़-धड़, गड़-गड़,
तब अनुभव करना मेरी नाराज़गी।
फिर उतर जाना मुझे मनाने..
उस झमाझम बारिश में
भीग जाना दोनो हाथ फैलाए बच्चों सा….।
फिर जब हो जाए शांत ये बारिश
तो अनुभव करना…..
पत्तो से रिस कर गिरते बूंदों में…
मेरे विरह के अश्कों को……।
फिर जब घण्टो बाद भी…
बच जाए….
किसी सूखी डाल पर…
इक़ बूंद….
अनुभव करना…
मेरे एकाकीपन को….।
फिर भूल जाना सारे प्रोटोकॉल,
शिष्टाचार, आचार-संहिता,
तोड़ देना दम्भ ज़माने का….
कि आ जाना……..
भेज रही हूँ इक़ नेह निमंत्रण,
प्रियतम तुमको आने का ।