क्या इतना कुछ कम देखा है? अमर नाथ सिंह ‘मोही’ खुशियों का आलम देखा हैपर्वत जैसा गम देखा है ।करुणा का सागर लहराते,अधरों पर शबनम देखा है ॥वह गम जो अपनों से मिलता,विस्मृत होते कम देखा है ।हँसने-रोने की संयमता,या कहिए संगम देखा है ॥पूजा घर हो या न्यायालय,अधिकाधिक ठग सम देखा है ।पूरे झूठे, लेकिन सच की,खाते रोज कसम देखा है ॥ऊँचे-ऊँचे महलों में भी,घनतम तम कायम देखा है ।जिस थल मय की तूती बोले,काबिज होते यम देखा है ॥सच पानी भरता है अक्सर,झूठ में इतना दम देखा है ।बाकी अब क्या देखे, ‘मोही’,क्या इतना कुछ कम देखा है ॥