क्या इतना कुछ कम देखा है?

खुशियों का आलम देखा है
पर्वत जैसा गम देखा है ।
करुणा का सागर लहराते,
अधरों पर शबनम देखा है ॥

वह गम जो अपनों से मिलता,
विस्मृत होते कम देखा है ।
हँसने-रोने की संयमता,
या कहिए संगम देखा है ॥

पूजा घर हो या न्यायालय,
अधिकाधिक ठग सम देखा है ।
पूरे झूठे, लेकिन सच की,
खाते रोज कसम देखा है ॥

ऊँचे-ऊँचे महलों में भी,
घनतम तम कायम देखा है ।
जिस थल मय की तूती बोले,
काबिज होते यम देखा है ॥

सच पानी भरता है अक्सर,
झूठ में इतना दम देखा है ।
बाकी अब क्या देखे, ‘मोही’,
क्या इतना कुछ कम देखा है ॥