तुमसे दो बातें

मीत ! स्नेह की डोर पकड़ जब, मैं पहुंचूंगा छाँव तुम्हारे,
मुझे पता है, थिरक उठेंगे, मीत ! कमलवत पाँव तुम्हारे ।

जाने कितने घाव हृदय में,
जाने कितनी पीर समाई,
वह क्या जाने पीर किसी की,
जिसके पैर न फटी बिवाई,
पुलकित हृदय, भाव हर्षित से, मीत ! भरेंगे, घाव तुम्हारे ।
मीत ! स्नेह की डोर पकड़ जब, मैं पहुंचूंगा छाँव तुम्हारे ॥

पुष्प झरेंगे, रस टपकेगा,
अधरों से, मृदु वानी से,
गंध समाहित होगी हिय में,
गीतों, गजल, कहानी से,
छू कर मम दिल महक उठेंगे, मर्म स्पर्शी भाव तुम्हारे ।
मीत ! स्नेह की डोर पकड़ जब, मैं पहुंचूंगा छाँव तुम्हारे ॥

मुस्कानों से स्वागत करना,
नैनन वंदनवार सजाना,
चाव, सहज, संचित, संदर्भित,
मीत ! लुटा दूँ, स्नेह खजाना,
प्रति पल खींच रहे सखि ! मुझको स्नेह, प्रीति के दाँव तुम्हारे ।
मीत ! स्नेह की डोर पकड़ जब, मैं पहुंचूंगा छाँव तुम्हारे ॥

तुमसे दो बातें करने हित,
कितने अधर लरजते होंगे,
तेरी चरण धूलि पाने को,
कितने शिखर मचलते होंगे,
“सागर” तो झुक गया स्वयं ही,
इतने मृदुल स्वभाव तुम्हारे।
मीत ! स्नेह की डोर पकड़ जब, मैं पहुंचूंगा छाँव तुम्हारे ।
मीत ! स्नेह की डोर पकड़ जब, मैं पहुंचूंगा छाँव तुम्हारे ॥