खुशबू इश्क़ की-गज़ल

कहाँ था इल्म कोई हम, गजल औ गीत गाएँगे
अनोखे प्यार की गरिमा, सँजो कर गुनगुनाएँगे ।

सदा हँसता रहूँगा मैं, तुझे हर पल हँसाऊँगा,
तुम्हारे साथ हिल-मिल प्रिय, जमाने को रिझाएँगे ।

कभी नैराश्य के बादल, उमड़ कर छा भी जाएँ तो,
जला उम्मीद के दीपक, कुहासा हम भगाएँगे ।

तुम्हारे दिल पे गम की छाँव तक पड़ने नही देंगे,
जमाने भर में खुशबू इश्क़ की, हम- तुम लुटाएँगे ।

मुहब्बत का नया इतिहास, रचने मीत आए हम,
खुदा गर पूछ लेगा तो, भला हम क्या बताएँगे ।

चलेगी साँस जब तक “सरि”, न रचिक इश्क़ कम होगा,
मुहब्बत चीज क्या, “सागर”, जमाने को बताएँगे ॥