कहाँ इतनी समझ है आदमी को सुखवीर चौधरी 'शिखर' कहाँ इतनी समझ है आदमी को,जला कर ख़ाक कर दे दुश्मनी को।गरल पी सकता है बनकर शिवा जो,निभा सकता है वो ही दोस्ती को।मिटा दो आफ़ताबों को जहाँ से,मसलते हैं जो श्रद्धा सी परी को।उसे तो छोड़ देना ही सही है,न समझे जो किसी की बेबसी को।शिखर कोई नहीं समझा है अब तक,ख़ुदा की चल रही जादूगरी को।