मार दो इन्हें कि ये इंक़लाब गायेंगी
ये जन्म से ही दौड़ में हैं
ये जन्म से ही होड़ में हैं
दुआ उठी कि बेटा ही हो
चाह उठी कि बेटा ही हो
दुनिया की फ़िर दौड़ भाग की
दुनिया की फिर अनैतिक चाल की
पैसा फूंका रुपया फूंका
बेटा ही हो मंतर फूंका
बेटी ना हो सास कह रही
बेटी होगी जाँच कह रही
हाय! अनहोनी ना हो,
ये धन सारे घर का खा जायेंगी
मार दो इन्हें कि ये इंक़लाब गायेंगी।
गर बच निकली तो फिर पढ़ने को जायेंगी
पढ़ लिख कर हक़ में लड़ने को जायेंगी
ना हक़ मिलेगा ना अधिकार मिलेगा
उलटे लांछन और अपमान मिलेगा
सिर्फ़ जाति पाती की खिचड़ी पकती
चलते रहने से पर वो ना थकती
एक महकमा जाल बिछाये रहता
ना कह कर भी है बहुत कुछ कहता
चुप्पी तोड़े ना टूटेगी इनकी,
बुलबुल खुद चलकर जाल में फंस जायेंगी
मार दो इन्हें कि ये इंक़लाब गायेंगी।
आगे बढ़ी ही थी कि गिद्धों का मेला था
झुण्ड था पूरा का पूरा वो ना कहीं अकेला था
कर रहे थे बिसात बिछा कर विस्तार अपना
संग देख रहे थे हरखुआ की छोकरी का सपना
फिर से गुज़र पड़ी वो अपनी वाचाल चाल में
लो फँस गयी वो फिर गिद्धों के जाल में
कोई हाथ जकड़े है कोई शिकार कर रहा है
ज़िंदा है वो पर उसी की नीचता से कोई मर रहा है
मुँह दबा कर रख ये चीखें हवा में घुल जायेंगी।
मार दो इन्हें कि ये इंक़लाब गायेंगी।
फिर पीट कर सीना कोई बाप रो रहा है
भाई खड़ा है न्याय के बीज बो रहा है
सत्ता का तराजू संग बाट लिये सब जोह रहा है
पुलिस का डंडा उसी तराज़ू पर तोल रहा है
रात है, सर्द सन्नाटा गर्म आँसू लिये रो रहा है
हुआ था जो पहले भी वो फिर से हो रहा है
बेख़ौफ़ होकर वो फिर से जल रही है
एक एक कर कितनी लड़ाइयां वो लड़ रही है
कह रही मत मांगो इंसाफ मेरा तुम भी पीस दी जाओगी
मार देंगें वो तुम्हें कि तुम इंक़लाब गाओगी ।