वे लांछित हुयीं
वे लांछित हुयीं क्योंकि
नहीं ज्ञान था उनको दुनियादारी का
नहीं पता था उन्हें कि विश्वास घर-घराने के लोगों पर ही करना है
कर लिया उन्होंने विश्वास अजनबियों पर
उन्होंने अपनों से परे
निभाई ईमानदारी दूसरों से
यह सज़ा है उनकी कि वे लांछित हो।
वे लांछित हुयीं क्योंकि
निश्चय था उनका, समाज से ऊपर उठ
अपने किये वायदे पर अटल रहने का
सामाजिक असमानता को ठुकरा उन्होंने चुनी थी अलग राह
उन्होंने रखा अपने प्रेम को सर्वोपरि
हो गयीं वे मौन हर तानें उलाहनें पर
स्वीकारा उन्होंने कि वे लांछित हों।
वे लांछित हुयीं क्योंकि
मुंह सिल उन्होंने सहे फिर धोखे
नहीं की उफ़्फ़, न भरी कराह
ईमानदारी का ईनाम उनका निजी विषय बन गया
नहीं रखा उन्होंने अपना पक्ष ,नहीं मांगी मदद
गहन मौन में जाकर अपने ईमान की प्रमाणिकता सिद्ध की
उकसाने पर भी उन्होंने जुबान न खोली
नियति है उनकी वे लांछित हों।
वे लांछित हुयीं क्योंकि
उन्होंने अपने इतिहास को भुला
अपने भाग्य का नया भूगोल ढूँढने की कोशिश की
इस बार सबसे मिलनसार होने की सोची
फिर की गलती,
मानव मस्तिष्क सिर्फ़ अपना इतिहास भूल सकता है,दूसरे का नहीं,
इस बार वे, उनके बदले का शिकार हुयीं
जो मुंहबोले अपने थे
इतिहास कहता है कि वे लांछित हों।
वे लांछित हुयीं क्योंकि
उन्होंने तोड़ी मर्यादा,
उन्होंने पुरुष मित्र भी उतनी ही संख्या में बनाये
जितनी संख्या महिला मित्रों की थी
जैसे प्रेम की प्रमाणिकता सिन्दूर में है
वैसे ही
भाई बहिन की प्रमाणिकता राखी बंधन में है
यूँ ही पुरुष से मित्रता की प्रमाणिकता
उस पुरुष की प्रियसी की सखी होने में हैं,
नियम क़ानून की अज्ञानता कहती है कि वे लांछित हों।
वे लांछित हुयीं क्योंकि
उन्होंने नहीं सहे किसी के अश्लील मज़ाक
ग़लत बातों और इरादों पर वे तिलमिला गयीं
गंदी मादक नज़रों को उन्होंने नज़रंदाज़ किया
उन्होंने धर्म और मर्यादा की बात की
उनको क्यों नहीं ज्ञात कि
वे उस जुमले में शामिल हो चुकीं हैं
जो नहीं उठा सकता है कोई आवाज़
नहीं हैं वे अधिकारिणी किसी भी नैतिकता की
बार-बार भूलती हैं वे अपना इतिहास
नैतिकता कहती है कि वे लांछित हों।
वे लांछित हुयीं क्योंकि
अन्दर के गुबार ने अब बाहर निकलने के लिए उत्पात मचा दिया
अब वे बोलने को व्याकुल हो उठीं
सच, कड़वा-सच, तीखा-सच, जटिल-सच, सीधा-सच, उल्टा-सच
वे बोल पड़ीं सब
उनकी बेचैनी ने सिद्ध किया कि वे विक्षिप्त हैं
सहारे, साथ, सहयोग की जगह उनको मिली नयी पहचान पागलपन की
अब फिर हैं वे मौन, उफ़्फ़ तक न करने को बाध्य
एकांत में है वे, अछूत सी
आजीवन रहेंगी वे “रजस्वला”
उनका मौन उनसे कहता है !!