दुःख
बीते वक़्त के साथ जाना
दुःख की उतनी ही श्रृंखलाएं हैं
जितनी किसी पुराने बरगद में जटाएँ।
एक माँ का दुःख जाना
जो पहले खुद विधवा हुयी फिर
अपनी बेटी को विधवा होते देखा।
अब वह मौत माँग रही है पर
ऋण शायद अब कोई भारी है
जीने की सज़ा अभी भी जारी है।
एक बेटी का दुःख जाना
जब भी वह सुबह आँखे खोलती है
माँ को टोकने के लिए आगे बढ़ती है कि
उन्होंने बिंदी क्यों नहीं लगाई ?
शब्द पनपे उससे पहले ही वह ठिठक कर रह जाती है
माँ को श्रृंगार बिना देखने से
ईश्वर में उनकी विरक्ति पनप रही है
पिता के जाने से असुरक्षा जागती है
माँ के खामोश हो जाने से बची खुची सुरक्षा मर जाती है।
एक बेटे का दुःख जाना
जवान बेटे ने जवान बाप को मुखाग्नि दी
वह जितना चुप है,
उसकी चुप्पी उतना बोलने को विचलित
वह मुस्कुरा रहा है माँ और बहनों को देखकर
माँ और बहनें मुस्कुरा रही हैं उसे देखकर
डर है उन सबको
यह गम उनमें से किसी और को ना निगल जाये
मुस्कुरा कर गम बांटना बीती बात है
वे तो आगे का जीवन बाँट रहे हैं।
ये माँए
पीपल के उन सूखे पत्तों सी हैं
जिन पर स्याह रंग से उकेरे जाती हैं
ब्रह्मांड की सबसे गूढ़ और गंभीर संवेदनायें
और उन्हें रखा जाता है किसी
पौराणिक ग्रंथ के बीच !!