धरती के पुरुष
धरती के पुरुष!
आख़िर क्यों बने रहना चाहते हो देवता ?
तुम इतने मुखर रहे अपने अधिकारों को ले कर
तुमने जो चाहा वही हुआ
इस दुनिया में
किसी देश विशेष में
किसी शहर विशेष में
किसी घर विशेष में
किसी रिश्ते विशेष में
फिर भी तुम अकेलेपन के शिकार रहे
तुम्हें तुम्हारी मिलकियत ने
नहीं होने दिया इतना सहज
कि तुम स्वीकार कर सको
कि तुमको स्त्री की ज़रूरत
उससे कही अधिक रही
जितनी किसी स्त्री को तुम्हारी
तुम रहे उनकी चीख़ों के कारण
किन्तु वे ही रहीं तुम्हारी चीखों का निवारण
तुमको पाला माँ ने
तुमको साथ मिला बहन का
तुम्हारी अर्धांगिनी बनी पत्नी
तुम्हारे हर संकट में खड़ी रही बेटी
बुढ़ापे में बहू ने ख़ूब सेवा की
फिर भी पाली तुमने इतनी चिंता
इतना रहस्य
इतनी असुरक्षा
इतनी असवेंदनशीलता
प्रभुत्व था तुम्हारे पास
पर तुम ना बांट सके अपने दर्द
अपने रहस्य और असुरक्षा
उन तमाम स्त्रियों से
जो तुम्हारे प्रेम में थीं
तुम्हारे प्रति स्नेह में थीं
क्यों बनते हो यूँ कठोर?
डरते हो कि
वे स्त्रियां तुमको
मारेगी ताने
जिनके शोषण में रहे तुम भागीदार
आंसुओं की समान ग्रंथियों
का वितरण किया था परमात्मा ने
स्त्री और पुरूष के मध्य
रोने से यूँ डरना
तुमको मार रहा है
और तुमको यूँ घुट-घुट करके
मरते देखना, मार रहा है
उस समग्र स्त्री समूह को
जो जन्म से मृत्यु तक
बनी रही तुम्हारी माँ
माँ कुढ़ रही है ममता के ममत्व से
बहन सच्चे साथी की करुणा से
पत्नी स्त्री के हर पहलू का स्नेह आँचल में भर
बेटी अपने हर उस वादे पर
जो किया था उसने खुद से
अपने अभिनेता के सम्मान के प्रति
तुम कितने खुशकिस्मत रहे पुरुष
तुमको थामने के लिये
हर डगर पर मौजूद रही स्त्री
तुम अपना ख्याल रखो
कभी नरम हो कर
कभी सहज हो कर
कभी रो-धो कर
कभी विनम्र हो कर
हे! धरती के देवता
घबराओ मत
हर मुश्किल में
हर हार में
हर असुरक्षा में
तुम्हारे जीवन की हर स्त्री
तुमको थाम लेगी !!