प्रीति
प्रीत कब से हो गई है भला विनिमय का साधन ?
यह हृदय की चेष्टा है जान करके की न जाए।
कौन जाने किस समय कौन किस कारण से भाये।
है कहां वश में मति के जो इसे टाला भी जाए।
लाख कर लो कोशिशें हृदय नहीं संभाला जाए।
वय से ये विवश न होती फिर जरा हो या हो यौवन
प्रीत कब से हो गई है भला विनिमय का साधन ?
कृष्ण प्रेम में पगी राधे न कुछ बदले में चाहे।
त्याग कर मीरां महल को गलियों में गिरधर मनाए।
हीर रांझा लैला मजनू रोमियो और जूलियट।
इस जगत में है भला कभी साथ वो रहने भी पाए।
दूर रहकर भी सदा करती है यह सर्वस्व अर्पण
प्रीत कब से हो गई है भला विनिमय का साधन ?
प्रेम में प्रतिदान चाहो जागती कामना जो सुप्त।
वासनाएं शेष रहती प्रीत फिर हो जाती लुप्त।
देह धन यौवन सभी नश्वर है ये शास्वत नहीं।
क्या मनीषी आमजन पर, है नहीं ये राज गुप्त।
स्नेह संबंध बस चाहते हैं पूर्ण हृदय से समर्पण।
प्रीत कब से हो गई है भला विनिमय का साधन ?