आत्मविश्वास धारण करो
हे ! मनु की संतति
यद्यपि समय है अतिशय विकट
किंतु मन की धारणा से
टल जाएंगे यह सब संकट।
आत्म गौरव आत्म संयम
आत्मविश्वास धारण करो
आधि-व्याधि आपदा का
स्वयं ही तुम निवारण करो।
आपदा में जिस प्रकार
कच्छप समेटे अपने अंग
गृह में रह तुम भी करो
महामारी की ये श्रृंखला भंग।
नासिका अरु मुख पर सदा
हो पट्टिका का आवरण
न कहीं पर व्यर्थ जाना
आमंत्रण पर भी हो संवरण।
हस्त प्रक्षालन करें बारंबार
यदि वस्तु सतह संपर्क हो
अपने परायों से दूर रहकर
वार्तालाप करें सतर्क हो।
परिवर्तनशील होता है समय
यह भी विगत हो जाएगा
सृष्टि धरा सब निर्मल होगी
फिर सुंदर आगत आएगा।
अपना और अपनों का बंधु
सहयोग जो हम करेंगे आज
खिलखिलाएगा फिर उपवन
सुख का पुनश्च होगा राज।