मैंने अपने आप से पूछा मैं क्या हूँ किस कारण से क्यूँ और कहाँ हूँ अहम त्याग कर सोचूं तो हूँ बिंदु सृष्टि और ब्रह्मांड विशाल है सिंधु बिंदु बिंदु है सिंधु सिंधु की बिंदु हूँ मैं अवशोषित हो वर्षित होता पुनः पुनः पुनर्जन्म की कदाचित यही अवधारणा बिंदु मात्र में छिपी अनंत संभावना बिंदु से ही प्रारंभ समस्त आकृति होती बिंदु बिंदु निर्माण समस्त प्रकृति होती।