भ्रम
जो कुछ भी, किया उसने
निस्संदेह बुरा, किया उसने
बुरा पर लगा नही इतना बुरा
क्योंकि एक भ्रम था दिल में
कि किया धरा ये उसका नही
बहकावे में आ गया है शायद
मंशा ये उसकी तो कतई नही।
समय इसी तरह गुजरता रहा
भ्रम यही दिल में पलता रहा
इसी एक भ्रम को पाले पाले
रिश्ता अबाध हमारा चलता रहा
दिया तोड़ भ्रम एक दिन उसने
सीना तान, राज़ खोला उसने
जो किया अपनी मर्ज़ी से किया
नही किसी के द्वारा उकसाया गया
भ्रम जो तोडा उसने गया टूट दिल
नींव रिश्ते की, अचानक गई हिल
पहुंचा जा शीघ्र टूट की कगार पर
अंतत:गया सब मिट्टी में ही मिल।
काश भ्रम ये, हमेशा बना ही रहता
रिश्ता इसी बहाने, टिका तो रहता॥