कश्मकश
कहता रहता दिल, जा उससे ले मिल
अहम पर जब तब, आड़े आ जाता है।
कश्मकश होने लगती, दिल दिमाग मे
मात पर दिल ही हर बार खा जाता है।
दिल उसका भी करता होगा मिलने को
अहम उसका भी रोक देता होगा उसको
सोचता होगा पहले मैं आऊँ मिलने को
दिल में रह रह ख्याल यही आ जाता है।
इधर हूँ मैं कश्मकश में, उधर होगा वो
हिम्मत जुटा नही पा रहे न मैं और न वो
सालों गए गुजर मामला है ज्यों का त्यों
दुराव दिनों दिन चौड़ा ही हुआ जाता है।
वजह कोई अनबन की नज़र आती नही
है भी तो कोई खुल कर कुछ बताता नही
बढे कदम अब कोई पीछे ले जाता नही
रिश्ते का बेबात सत्यानाश हुआ जाता है।
कश्मकश की दलदल में गया फंस ये दिल
कोशिश करूंगा शायद जाए बाहर निकल
डरता हूँ कर न दे वो मेरी कोशिश विफल
इसी उधेड़बुन में ही वक़्त गुजरा जाता है।