सख्त अफ़सोस है

न कोई गिला न शिकवा, न रोष है
परन्तु जो हुआ, सख्त अफ़सोस है।

वक़्त ऐसा डरावना पड़ रहा देखना
न रही उमंग, न दिलों में जोश है।

राजनीति गई पहुँच निचले स्तर पे
पास सबके गालियों से भरा कोष है।

अपने अवगुणों की तरफ देखते नहीं
हर कोई दूसरों में पर ढूंढता, दोष है।

प्रतिस्पर्धा में कितना कुछ खो दिया
हिसाब रखने का किसे रहा, होश है।

ये जिंदगी कुदरत की अद्धभुत देन है
जियो जब तक सांस आख़री, शेष है।

सेना हमारी का कोई कहीं सानी नही
दुबकते दुश्मन, किया जब जयघोष है।

किसी को पड़े दो जून रोटी के भी लाले
कोई सुरा सुंदरी में दिन रात, मदहोश है।

जमाना गया वो, गया था जीत कछुआ
जीतता अब वही दौड़ में जो, खरगोश है।

हे ईश्वर!कैसा ये संसार बसाया है तूने
कहीं झुग्गियों का इलाका, किसी का,पॉश है।

कुदरत ने दिए दुनिया को नायाब तोहफे
इंसां पर हद दर्ज़े का, एहसान फरामोश है।