दोहे
पलक हया से झुक गई, पी का कर दीदार ।
हाय! नज़र जो मिल गई, छाई फ़िज़ा बहार ।।
वखत बुरा हो जाय तो, संग न कोई मीत ।
इक बिसात है जिंदगी, जीत सके तो जीत ।।
प्यास जहाँ तहॅ॔ जल नहीं, तहॅ॔ जल बरतन रीत ।
सोचत सोचत हर घड़ी, प्यासा जाए मीत ।।
धुआँ-धुआँ बदरी उड़ी, कर श्रावण श्रंगार ।
मीत प्रीत भटकत फिरी, रोवे असुअन धार ।।
तेरा मेरा मति करै, जग तेरा कुछ नाहि ।
यम मिलन जब होएगा, संग न कछु ले जाहि ।।
तुरपन रिशतों की भली, फिर-फिर सिलिए जाहि ।
षडयंत्रों के चालते, फिर-फिर उधड़त जाहि ।।
तेरा मेरा कुछ नहीं, परछाई ना संग ।
अंतिम मज़मा हट गया, फर-फर जरते अंग ।।
राधा के संग कृष्ण है, मीरा संग न कोय ।
राधा राधा सब रटै, मीरा कहे न कोय ।।
बालक हो छ: साल का, शाला नाम लिखाय ।
अक्षर गिनती सबहि कछू, शनै:शनै: पढ़ जाय ।।
राम रहीमन एक हैं, मत कर एक अनेक ।
बिच धरमन के भेद ना, मानुष मानुष एक ।।
माता है पहला गुरू, दूजा आखर जान ।
तीजी चतुराई भली, सीख लीजिए ज्ञान ।।
शाला जाए लाड़ली, लेकर हाथ किताब ।
थामे बैंया भ्रात की, पढ़ने को बेताब ।।
गुरून आदर दीजिए, गुरू ज्ञाने भण्डार ।
सीस झुकाए सीखिए, ज्ञान बढ़े अंबार ।।
हल सवाल को कीजिए, दो और दो घटाय ।
दो में दो को जोड़िए, अंक ज्ञान हो जाय ।।
इकला आया जगत में, इकला ही चल जाय ।
काम कछू करले भला, फिर पाछे पछताय ।।
इकला आया जगत में, संग न कोई मीत ।
रख उजियारा अंतरे, रैन जायगी बीत ।।
माटी में पैदा हुआ, माटी में मिल जाय ।
गर्व ना कर तू ए मना, माटी ही रह जाय ।।
पूत-सुता घर में भरे, मात न पूछे कोय ।
जीवन की अंतिम घड़ी, वृद्धाश्रम माहि होय ।।
चांद खिला मन अर्घ दिया, किया पूर्ण उपवास ।
उमर बढ़े पी चांद की, करूं चांद अरदास ।।
माटी से पैदा हुआ, माटी संगहि जाय ।
माटी सांगे खेलते, माटी में मिल जाय ।।