कृष्ण

गोपी बावरी हो गयी कृष्ण बिना,
खोजत मधुवन प्राण पियारे॥

कल्पना चित तनिकौ न उतरे,
लागे न कवनऊ ओर जिआ रे॥

दूरी से राही बटोही देखाइ त,
कान्हा कहि के उठि धाइ पुकारें॥

जा बिन बिकल सबै पशु पक्षी
गोकुल वासी फिर कौन दशा रे॥

खोजत विपिन फिरत गलियन,
कालिंदी अरू कदंब की डारन॥

कोऊ सखी कहत गये मथुरा,
छोड़ि गये हमें बीच मंझारन॥

राधा ललिता सब बिकल भई,
काहे बिधि सब बात बिगारेन॥

जल बिन मीन जइसे तडपै,
वैसइ बिलखत बैठै ग्वारन॥