साजन हो चितचोर
बिना लोभ के प्रेम कर, ये अद्भुत उपहार।
प्रेम क्रोध से कब मिलै, दूरी बढ़े अपार॥
मेरा मन भी आपके, सदा रहे आधीन।
प्रियतम मेरे आप बिन, मन है बहुत महीन॥
चैन चुराया आपने, नही बीतती रात।
मनवा व्याकुल है बहुत, नहीं हो रही बात॥
तुमको माँगू रात दिन, करो प्रिये विश्वास।
जाती माँ के द्वार पर, लेकर मन में आस॥
विरह बेदना है बहुत, तड़पत बीते रात।
कह न सकू इस पीर को, कौन सुनेंगा बात॥
सब कुछ मन है जानता, नहीं मिलन संयोग।
प्रेम डोर टूटे नही, सह न पाऊँ वियोग॥
कमल हृदय मन में खिला, सागर करे हिलोर।
चुरा लिया चित आपने, साजन हो चितचोर॥
लेखनी लिख रही अभी, विकल हृदय उद्गार।
छूट जाए न एक दिन, यह जीवन संसार॥